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आपकी
कक्षा के बच्चे जो भाषा/भाषाएँ दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते- समझते हैं, वह
पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा से किस प्रकार अलग है? लगभग सौ शब्दों में अपना उत्तर
लिखें और उदाहरण के साथ समझाएँ।
आपकी
कक्षा के बच्चे जो भाषा/भाषाएँ दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते- समझते हैं, वह
पाठ्यपुस्तकों में लिखी गई भाषा से किस प्रकार अलग है? लगभग सौ शब्दों में अपना उत्तर
लिखें और उदाहरण के साथ समझाएँ।
शासकीय प्राथमिक शाला दुर्गानगर जबलपुर मेरे यहां पाठ पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है इस अधिकतर बच्चे यहां पर खड़ी भाषा बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं फिर पाठ पुस्तक की भाषा में समझाते हैं
ReplyDeleteपाठ्य पुस्तक की भाषा और दैनिक बोली जाने भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है। केवल सुदूर आदिवासी बाहुल्य में थोड़ी दिक्कत होती पर शिक्षक द्वारा ग्रामीण जनों के सहयोग से अध्यापन कार्य करते हैं।
Deleteहमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी भाषा में बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं।
ReplyDeleteYes correct
Deleteकिताबों में लिखी हुई भाषा या हमारे द्वारा समझाने पर बच्चे किताबें एवं हमारी भाषा को समझते हैं यही उनकी मातृभाषा भी है इसलिए हमारे यहां एक समान भाषा है जिसे बच्चे अपने घर परिवार मैं भी बोलते हैं और समझते हैं
Deleteपाठ पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है।इसलिए पहले स्कूल की भाषा मे पढ़ाया जाना चाहिए ।
ReplyDeleteफिर बच्चों की भाषा मे उसके बारे मे बात करना चाहिए। आैर बच्चों को अपनी भाषा मे बोलने का अवसर देना चाहिए।
शिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है। उनका कथन था कि-
ReplyDeleteयदि मुझे कुछ समय के लिए निरकुंश बना दिया जाए तो मैं विदेशी माध्यम को तुरन्त बन्द कर दूंगा।
गांधी जी के अनुसार विदेशी माध्यम का रोग बिना किसी देरी के तुरन्त रोक देना चाहिए। उनका मत था कि मातृभाषा का स्थान कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती। उनके अनुसार, "गाय का दूध भी मां का दूध नहीं हो सकता।"
Deleteपाठ पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है।इसलिए पहले स्कूल की भाषा मे पढ़ाया जाना चाहिए ।
फिर बच्चों की भाषा मे उसके बारे मे बात करना चाहिए। आैर बच्चों को अपनी भाषा मे बोलने का अवसर देना चाहिए
Mere vichar se bachchon ko pahale unaki matrabhasha me path ka saransh samajha Dena chahiye fir path padhana chahiye.kyonki rajya bhasha or kshetriya bhasha me anter hota hai.chhote bachchon ko unaki hi bhasha me sikhaya Jana chahiye.
Deleteहमारे स्कूल में बच्चों की भाषा और पाठ्यपुस्तक की भाषा में अंतर है जब बच्चों को पढ़ाया जाता है तो समझ नहीं आने पर उनकी मातृभाषा में समझाते हैं |
ReplyDeleteमहेश कुमार कुशवाहा प्राथमिक शिक्ष.
Deleteहमारे स्कूल में पढ़ाई जाने वाली भाषा और बच्चों द्वारा बोली जाने वाली भाषा लगभग एक समान है किताबों में लिखी हुई भाषा या हमारे द्वारा समझाने पर बच्चे किताबें एवं हमारी भाषा को समझते हैं यही उनकी मातृभाषा भी है इसलिए हमारे यहां एक समान भाषा है जिसे बच्चे अपने घर परिवार मैं भी बोलते हैं और समझते हैं
बेदनारायण दुबे
Deleteसहा शिक्षक प्रा शा सुकतरा
जिला सिवनी
हमारे क्षेत्र की भाषा एवं पाठ्य-पुस्तकों की भाषा में अंतर नही है बच्चे शाला एवं घर में एक ही भाषा का प्रयोग करते है
हमारे स्कूल में बच्चों की भाषा और पाठ्यपुस्तक की भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है हमारी भाषा बुन्देलखण्डी है बच्चों को जो भाषा पढाई जाती है वह हिन्दी है अत: बच्चों की समझ में आसानी से
ReplyDeleteआ जाती है
अत: बच्चों को सिखाना आसान हो जाता है
परन्तु जिन क्षेत्रों में पाठ्यपुस्तकों की भाषा और बच्चों की भाषा में अन्तर होता है वहां बच्चों को समझाना कठिन हो जाता है
Sahi bat hai
Deleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही है।इसलिए बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। और जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है।
ReplyDeleteभाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यन्तर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यन्तर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है।
ReplyDeleteशिवशंकर मिश्रा ( जतारा ) mp
भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यन्तर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यन्तर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है।
Deleteशिवशंकर मिश्रा ( जतारा ) mp
Hamari Shala के विद्यार्थियों की भाषा को हमारी पुस्तकों की भाषा काफी कुछ सिमिलर है जिससे उन्हें समझाने में कोई खास सुविधा का सामना नहीं करना पड़ता परंतु कुछ परिवार बिहार से यहां पर आकर स्कूल के पास की बस्ती में है जो अपने विचारों को व्यक्त करने में बिहारी लैंग्वेज के ज्यादातर प्रयोग करते हैं उन्हें दोनों तरह से समझा कर बताने में वह समझ पाते हैं
ReplyDeleteहमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी /बुंदेली बोली में बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं।
ReplyDelete
ReplyDeleteहमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी /मालवी बोली में बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं।जैसे-बिल्ली को बच्चे मालवी मे मिनकी बोलते है। कुत्ते को टेगडा
1, 2022 at 3:14 AM
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही है।इसलिए बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। और जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है।
स्कूल की भाषा पूरे देश की भाषा होती हैं।जबकि बच्चे अपनी घरू भाषा में बात करते हैं।सबसे पहले हम उनकी भाषा में बात करना चाहिए।फिर उनको मानक भाषा में पढ़ने का अभ्यास करना चाहिए।jugalkishor Parmar.boys ps Girota.Indore.
ReplyDeleteगुना में यह है कि हमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी भाषा में बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं।
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही है।इसलिए बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। और जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है।
ReplyDeleteशिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है।
विदेशी भाषा का बहिष्कार बहुत जरूरी है क्योंकि मातृभाषा में ही बच्चे वास्तविक स्थिति को समझ पाते हैं मातृभाषा में ज्ञान देना ही सर्वथा उचित रहेगा यदि मेरा बस चलता तो मैं मातृभाषा में ही प्राथमिक शिक्षा को महत्व देता।
सुनीत कुमार पाण्डेय,
चकराघाट, हीरापुर कौड़िया, कटनी
अतिउत्तम 👌👌
Deleteधन्यवाद मेम।
Delete🙏🙏🙏🙏
सल
ओमप्रकाश पाटीदार प्रा.शा.नांदखेड़ा रैय्यत विकासखंड पुनासा जिला खंडवा
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा एवं स्कूल में बोली जाने वाली भाषा मे ज्यादा अंतर नही है इसलिए बच्चे स्कूल की भाषा ,पाठ्यपुस्तक की भाषा को अच्छे से समझ लेते हैं बच्चों के घरों में भी स्कूल की भाषा हिंदी भाषा का प्रयोग अधिक होता है इसलिए बच्चे अच्छे तरीके से भाषा को समझ लेते है।
पाठ्य पुस्तक की भाषा में और हमारे बच्चों की बोली वाली भाषा में कोई विशेष अंतर नहीं है ! मगर जो अन्य भाषा है उसे शिक्षण में सबसे निचले स्तर से जुड़ना चाहिए ताकि बच्चे अच्छे से सीख सकें ! अंग्रेजी भाषा बच्चों के घरों में नहीं बोली जाती जिससे बच्चों को सीखने में थोड़ी कठिनाई होती है !
ReplyDeleteमैं संतोष कुमार कुशवाहा शासकीय प्राथमिक विद्यालय कटा पुर विकासखंड सेवड़ा जिला दतिया
ReplyDeleteहमारे यहां पर बोली जाने वाली भाषा और किताबों की भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है परंतु हमारे यहां बच्चों की मातृभाषा बुंदेली भाषा खड़ी बोली है जिसके कारण छात्रों को किताबों की भाषा समझने में कोई परेशानी नहीं होती है मेरे द्वारा पहले बच्चों को बुंदेली वह खड़ी बोली के माध्यम से समझाया जाता है और वह किताबों की भाषा आसानी से समझ जाते हैं जैसे - बादल को बच्चे बदरा , तालाब को तला,ताला को तारो,गाय को गइया बोलते हैं।
शासकीय प्राथमिक शाला पिपरिया मल्ल में अध्ययन रत हैं मेरे यहाँ के बच्चे शुरू में स्कूल आते हैं तो ग्रामीण भाषा का प्रयोग करते पर जैसे पैर को गोडे बोलते ऐसे ही बहुत से शब्द ग्रामीण के होते हैं पर समझाने पर पुस्तक की भाषा का प्रयोग करने लगते हैं इस प्रकार बहुत ही समझदार बन जाते हैं।
ReplyDeleteहमारे बच्चे जो भाषा बोलते हैं और किताबों की जो भाषा है उसमें भिन्नता पाई जाती है जैसे हमारे गांव के बच्चे झाड़ू को बोखरा कहते हैं, बकरी को chheriकहते हैं, दादा जी को- दद्दू ,दादी जी को -अम्मा, जानवरों को मवेशी, घर को bakhar कहते हैं |इस प्रकार हमारी स्कूल की भाषा और गांव के बच्चों की घर की भाषा में अंतर पाया जाता है |उनके घर की भाषा किताबों की भाषा से मेल नहीं खा पाती है| जिस कारण उनको पढ़ने में कठिनाइयों का अनुभव करना पड़ता है|
ReplyDeleteरघुवीर गुप्ता( प्राथमिक शिक्षक) शासकीय प्राथमिक विद्यालय- नयागांव जन शिक्षा केंद्र -शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय- सहस राम ,विकासखंड -विजयपुर जिला- श्योपुर (मध्य प्रदेश)
हमारे स्कूल में बच्चों की भाषा और पाठ्यपुस्तक की भाषा में अंतर है जब बच्चों को पढ़ाया जाता है तो समझ नहीं आने पर उनकी मातृभाषा में समझाते हैं
ReplyDeleteशिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है। उनका कथन था कि-
ReplyDeleteहमारे स्कूल की भाषा में और छात्रों की मातृभाषा में कुछ ज्यादा फर्क नहीं होता है परंतु कुछ शब्दों को समझने में समय लगता है परंतु जल्दी ही वह सोचने और समझने लग जाते हैं इसका कारण यह हो सकता है कि भोपाल के नजदीक ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण उनके परिवार में भोपाल में बोली जाने वाली भाषा एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर वर्तमान समय में नहीं रह गया है गया है क्योंकि स्थानीय बोली के बजाय हिंदी पाठ्य पुस्तक भाषा में बोलने का अभ्यास ज्यादा करने लगे हैं परंतु अंग्रेजी भाषा सीखने में छात्रों को समय लगता है पर वह जल्दी ही सीखने का प्रयास करते हैं आजकल इंटरनेट केबल नेटवर्क टीवी के माध्यम से बच्चे हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा के शब्दों का उपयोग करने लगे हैं जिससे उनके सोचने समझने में इन भाषाओं का व्यापक प्रभाव है
ReplyDeleteपाठ पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है।इसलिए पहले स्कूल की भाषा मे पढ़ाया जाना चाहिए ।
ReplyDeleteफिर बच्चों की भाषा मे उसके बारे मे बात करना चाहिए। आैर बच्चों को अपनी भाषा मे बोलने का अवसर देना चाहिए।
हमारे यहाँ की मातृभाषा स्थानीय लोगों की और विद्यालय की भाषा में धरती आसमान का फर्क है बच्चों को सीखने में बहुत मुश्किल का सामना करना पड़ता है
मध्य प्रदेश मालवा में हमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी /मालवी बोली में बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं। अंग्रेजी भाषा को समझाने के लिए पहले लोकल लैंग्वेज में समझाना पड़ता है फिर उनको अंग्रेजी में बताया जाता है अ
ReplyDeleteBacchon ko pahle bacchon ko Paat badhate apni matrabhasha mein samjhate hain Taki bacche part Ki Har gatividhi ko shabdon ko 8 ko bhavarth ko sahayata se saralta se samajh sake Apne matrubhasha Mein paath ka gyan prapt kar sake
ReplyDeleteहमारे यहाँ बच्चों द्वारा बोली जाने वाली भाषा और पाठ्यपुस्तकों की भाषा में बहुत कम अंतर है लगभग ना के बराबर।यद्यपि बच्चों को अंग्रेजी विषय पढ़ने में समस्या आती है तो उसके लिये बच्चों को पाठ का उच्चारण कर अर्थ समझा कर पाठ समझाया जाता है।
ReplyDeleteहमारी क्षेत्रीय भाषा और पाठ्य पुस्तकों की भाषा में ज्यादा कोई खास अंतर नहीं है इसलिए बच्चे पाठ्य पुस्तकों की भाषा को समझते भी हैं और बोलते भी हैं तो पाठ्यपुस्तक पढ़ाते समय बच्चों को कोई खास तरह की परेशानी नहीं होती है और बच्चे अच्छे से समझ भी पाते हैं
ReplyDeleteबच्चों को हमारे स्कूल मे हिन्दी मुख्य व इंग्लिश द्वितीय भाषा के रूप मे पढ़ाते है। हिन्दी ही हमारे क्षेत्र की मातृ भाषा है।
ReplyDeleteशिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है।
ReplyDeleteमैं श्रीमती रुखसाना बानो अंसारी एक शाला एक परिसर शासकीय कन्या शासकीय प्राथमिक कन्या शाला चौरई में पदस्थ हूंपाठ पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है।इसलिए पहले स्कूल की भाषा मे पढ़ाया जाना चाहिए ।
ReplyDeleteफिर बच्चों की भाषा मे उसके बारे मे बात करना चाहिए। आैर बच्चों को अपनी भाषा मे बोलने का अवसर देना चाहिए।
हमारे यहां की पाठपुस्तको की भाषा और हमारे द्वारा बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है । बच्चो को जो भाषा पढ़ाई जाती है वह हिन्दी है । अतः बच्चों की समझ में आसानी से आ जाती है । इसलिए बच्चों को सिखाना आसान हो जाता है । परंतु जिन क्षेत्रों में पाठपुस्तको की भाषा और बच्चों की भाषा में अंतर होता है वहाँ बच्चों को समझाना कठिन हो जाता है ।
ReplyDeleteबच्चों को उनकी मातृभाषा के संबंध में विद्यालयों मैं महत्व देना चाहिए।
ReplyDeleteपाठ्य-पुस्तक में शुद्ध हिंदी भाषा प्रयुक्त होती है और म प्र के गांवों में बच्चों की परिचित भाषा मालवी है I ऐसी स्थिति में बच्चों से जब बातचीत करती हूं तथा पाठ का सारांश समझाते वक्त मालवी भाषा का ही उपयोग करना बेहतर प्रतीत होता है और उनको भी अपनत्व का एहसास होता है I
ReplyDeleteबच्चे जो भाषा घर में बोलते हैं अधिकांश जगह स्कूलों में भी उससे मिलती-जुलती भाषा का प्रयोग होता है थोड़ा बहुत अंतर होता है जिससे बच्चों को उनका अंतर समझा कर पढ़ाया और समझाया जा सकता है बच्चों की घर की भाषा स्कूल की भाषा के लिए एक सेतु का निर्माण करती है जिससे बच्चों को समझने और पढ़ने में सहूलियत होती है बच्चे अपनी दिनचर्या में जिस भाषा का प्रयोग करते हैं अगर उन्हें समझाया जाए तो बहुत जल्दी स्कूल की भाषा सीख जाते हैं मेरा मानना है कि यह भाषा का थोड़ा अंतर बच्चों के अंदर और उत्सुकता ही पैदा करता है और भी इसे सीख कर बहुत उत्साहित महसूस करते हैं इसे हमें समस्या नहीं समाधान के रूप में लेना चाहिए मैंने देखा है जब बच्चे घर की भाषा के स्थान पर स्कूल की भाषा का प्रयोग विभिन्न वस्तुओं के लिए करते हैं तो उनके चेहरे पर अपार खुशी दिखती है
ReplyDeleteउत्तम विचार मिश्र जी
Delete🙏🙏🙏🙏
Hamare area me boli jane wali bhasha Or pathyapustak ki bhasha me jyada antar nahi hai isliye bachche sab asani se samajhte hen.
ReplyDeleteजो बच्चे मेरी कक्षा में पढ़ने आते हैं उनकी भाषा पुस्तक की भाषा से अलग है। बच्चों को पुस्तक की भाषा सिखाना अपने आप में एक चुनौती है। टीवी और मोबाइल का प्रभाव समाज पर दिनों दिन बढ़ता जा रहा है जिसके कारण खड़ी बोली और अंग्रेजी भाषा में बोलना बड़प्पन का प्रतीक माना जा रहा है। अगर बच्चों की भाषा में पाठ को समझाया जाए या कक्षा की गतिविधियों को पूरा किया जाए तो बच्चे पुस्तक में दी गई मानक भाषा को नहीं सीख पाएंगे। समाज में ऐसी मान्यता है कि यदि बच्चा घर की भाषा को छोड़कर खड़ी हिंदी या अंग्रेजी नहीं बोल पाता तो उसकी पढ़ाई लिखाई ठीक से नहीं चल रही है, अतः कक्षा में बच्चे की भाषा में बात करना ठीक नहीं समझा जाता।
ReplyDeleteHamare school mein bacchon ki bhasha aur pathya Pustak ki bhasha mein Adhik Antar Nahin Hai Hamari bhasha Hindi Manik hai Jis bhasha mein bacchon ko padhaayaa jata hai vah Hindi Manik hai ath bacchon ki samajh mein aasani Ho Jaati Hai bacchon Ko Unki matrubhasha ke sath school ki Bhasha ka Mela Jhula Roop Mein Hi sikhana chahie parantu oo Jind Kshetra Mein pathya Pustak ki Bhasha aur bacchon ki bhasha mein Antar Hota Hai bacchon ka adhigam kathin ho sakta hai
ReplyDeleteहमारे यहाँ पाठय पुस्तक की भाषा और हमारे द्वारा बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अन्तर नहीं है ।यहाँ पर अधिकांश बच्चे हिन्दी भष मे ही बोलते है,इसलिये बच्चों को पहले उनकी बोली में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में बताते हैं ।
ReplyDeleteहमारे यहां अधिकांश बच्चे द्वारा बोली जाने वाली भाषा बघेली भाषा है, जबकि पुस्तक में लिखी हुई भाषा खड़ी हिंदी है। अतः खड़ी हिंदी एवं बघेली भाषा में ज्यादा फर्क नहीं हैं इसलिए बच्चों को समझाने में या समझने में ज्यादा कठिनाई महसूस नहीं होती है।
ReplyDeleteहमारे यहां जो शाला है वह ग्रामीण क्षेत्र है जहां बच्चे ग्रामीण देहाती भाषा का प्रयोग करते है एवं पूरा गांव देहाती भाषा का प्रयोग करते है इसलिए हमें भी इसी भाषा के साथ बच्चो को सिखाना पड़ता है। धीरे धीरे बच्चे सीख रहे है।
ReplyDeleteघरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही होने से बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है।
ReplyDeleteकक्षा के बच्चे जो भाषा भाषाएं दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते समझते हैं वह पाठ पुस्तकों में लिखी गई भाषा से एक शिक्षक के तौर पर हमारे लिए समझना महत्वपूर्ण है की हमारी कक्षाओं के बच्चे अलग-अलग भाषा संबंधी परिवेश से आते हैं पर अक्सर उन्हें अपनी भाषा से शिक्षण सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है भारत में कितनी भाषा संबंधी विविधता होने के बावजूद स्कूलों में शिक्षा का माध्यम केवल 36 भाषाएं ही हैं बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती और उनकी शिक्षा बहुत हद तक या पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में ही होती है एक मोटे आकलन से पता चलता है कि हमारे देश के प्राथमिक स्कूलों में लगभग 25% बच्चे घर और स्कूल की भाषा में अंतर होने के कारण आरंभिक वर्षों में गंभीर चुनौतियों का सामना करते हैं बच्चे जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने के लिए विवश है पर स्कूल के बाहर उन्हें अंग्रेजी भाषा बोलने सुनने को नहीं मिलती इस श्रेणी में हमारे देश को अनेकों बच्चे पाए जाते हैं इस कारण यह बच्चे कक्षा में अपमानित लाचार और डरा हुआ महसूस करते हैं
ReplyDeleteHamare yahan ke bacchon ko Billi bhasha aati hai isliye ham pahle part padhte Hain fir bhi bhasha mein iska translation Kar ke bacchon ko samjhate Hain
ReplyDeleteBachche apni denik jeevan main jo shabdoon ka istemal kartein hain vo saral shabdon aur sthani bhasha se jude hote hain. Janki padhya pustak ki bhasha main kuch shabd kadhin hotein hain.In kadhin shabdon ke arth samjha kar padane main saralta hoti hai.
ReplyDeleteاسکول میں کتابوں کی زبان اور بچوں کی گھر کی زبان میں فرق ہوتا ہے اور مگر ٹیچر اس کو آسان کر کے پڑھاتے ہیں....
ReplyDeleteराजेश कुमार पटेल एकी.शास. मा.शाला पिपरिया वि खंड गोटेगांव जिला नरसिंहपुर
ReplyDeleteहमारे यहां की पाठयपुस्तक की भाषा और यहां की बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है इसलिए यहां बच्चों को पढ़ाने समझाने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती और कुछ शब्दों को समझना पढ़ता है जो बच्चों को स्थानीय भाषा में समझाकर पढ़ाते हैं
ReplyDeleteपाठ्य पुस्तक की भाषा में और हमारे बच्चों की बोली वाली भाषा में कोई विशेष अंतर नहीं है ! मगर जो अन्य भाषा है उसे शिक्षण में सबसे निचले स्तर से जुड़ना चाहिए ताकि बच्चे अच्छे से सीख सकें ! अंग्रेजी भाषा बच्चों के घरों में नहीं बोली जाती जिससे बच्चों को सीखने में थोड़ी कठिनाई होती है ।कुछ बच्चों से अंग्रेजी पढ़ते बन भी जाता है तो बाकी बच्चे जिनसे अंग्रेजी पढ़ते नहीं बनता है वे अपने आप को बहुत कमजोर समझते हैं और शर्मिंदा भी होते हैं। इसलिए बच्चों को पढ़ाते समय बहुत रोचक TLM का उपयोग करना चाहिए । उनको बहुत ही जमीनी स्तर से समझाना चाहिए ।
स्कूल की भाषा राष्ट्र की भाषा होती हैं।जबकि बच्चे अपनी मातृभाषा में बात करते हैं।सबसे पहले हमें उनकी भाषा में बात करना चाहिए।फिर उनको मानक भाषा में पढ़ने का अभ्यास करना चाहिए
ReplyDeleteमैं चम्पकलता धुर्वे प्राथमिक शिक्षिका PS Bharra Tola Chhanta में पदस्थ हूं जिला डिण्डौरी विकास खण्ड समनापुर ( मध्य प्रदेश) मुझे बच्चों की भाषा और स्कूल की भाषा में काफी भिन्नता दिखाई देती है। जैसे हम स्कूली भाषा में गाय को गाय ही कहते हैं ।पर ब च्चे अपनी भाषा में गाय को गोरू कहते हैं ,बिल्ली को बिलाई,चश्मा को चचमा, झाड़ू को बहरी इस तरह से कई शब्दों में भिन्नता पाई जाती है। फिर भी बच्चे मौखिक रूप से बात चीत करने पर समझ जाते हैं। मैं उन्हें ईसारे से समझाने का प्रयास करती हूं। जैसे - बेटे वो झाड़ू देना जरा। बच्चे आसानी से समझ जाते हैं। इसके अलावा अब बहुत से बच्चे पढ़ें -लिखे पालकों के यहां से आते हैं। जो स्कूली भाषा को बोलने में प्रयासरत रहते हैं। अतः मैं कहना चाहूंगी । कि अब हमारे देश में सुदूर क्षेत्रों की कमी होते जा रही हैै। क्योंकि अब हर गांव की पहुंच शहरों तक है। इसलिए भाषा में भिन्नता होने के बाद भी सीखने-सिखाने में अधिक कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता। बच्चे धीरे-धीरे स्कूल की भाषा को बोलने -लिखने व समझने लगते हैं। फिर भी हमें कक्षा 1से 3तक
ReplyDeleteमें अधिकतर बच्चों की भाषा का ही उपयोग करना लाभकारी सिद्ध होगा। धन्यवाद
हमारे यहां बच्चे की प्रारंभिक भाषा और पाठ्य पुस्तक में लिखी हुई भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है बच्चे जो दैनिक घर में जिन शब्दों का उपयोग करते हैं पाठ्य पुस्तक में वह शब्द थोड़े भिन्न होते हैं हमारे यहां बच्चे अपने दैनिक जीवन में खड़े शब्दों का उपयोग करते हैं अर्थात खड़ी भाषा के कुछ शब्द बोलते हैं और पाठ्य पुस्तक में जब वही शब्द भिन्न रूप में आते हैं तो उन्हें समझने में थोड़ी परेशानी होती है परंतु हम यदि उनको उनकी भाषा में खड़ी बोली में उन शब्दों को समझा देते हैं एवं उनकी भाषा में सुधार कर देते हैं एवं आगे चलकर बच्चों में भाषा का यह सुधार व्यापक परिवर्तन लाता है और बच्चे खड़ी बोली से परिपक्व भाषा का प्रयोग धीरे-धीरे करने लगते हैं उदाहरण के लिए कक्षा 5 का पुष्प की अभिलाषा नामक पाठ जिसमें
ReplyDelete"चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं" इसमें बच्चे सुर वाला को नहीं समझ पा रहे पुष्प को नहीं समझ पा रहा है यदि हम उन्हें सुरबाला यानी देवकन्या पुष्प यानी फूल इस प्रकार समझा दें तो वे इसको भली प्रकार समझ जाते हैं एवं पुस्तक की भाषा का प्रयोग धीरे धीरे करने लगते हैं और घर पर अपने पालको और मित्रों को बताते हैं एवं खुश होते हैं l
धन्यवाद,,
महावीर प्रसाद शर्मा
प्राथमिक शिक्षक
शासकीय प्राथमिक विद्यालय गिन दौरा
विकासखंड बदरवास ,जिला शिवपुरी मध्य प्रदेश
School ki bhasha or garbhashay alg ho skti he bchche ko phle school ki bhasha me phle btaae fir whi matr bhasha me smjhaae to bchcho ko smjhne me aasani hogi
ReplyDeleteहमारे स्कूल की भाषा और बच्चों की भाषा में विशेष अंतर नहीं है सर्वप्रथम मेरा मानना यह है कि हमें बच्चों को उनकी भाषा में स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अवसर देना चाहिए यदि हम पुस्तक की भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो बच्चों को परेशानी आ सकती है हमें पढ़ाते समय उनकी भाषा को पुस्तक की भाषा से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए ताकि बच्चों की समझ में विषय वस्तु आसानी से आ सके
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही है।इसलिए बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। और जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है। विक्रम सिंह गवाटिया, शा. एकीकृत मा वि नरोला हिरापुर, म प्र।
ReplyDeleteबच्चों को पहले बोलने का भरपुर अवसर देना चाहिए ताकि बच्चा अपने मन से डर निकाल सके तदुपरांत बच्चे की भाषा औऱ स्कूल की भाषा दोनों को समजाते हुए पढना चाहिए ।
ReplyDeleteहमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी भाषा में बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं।
DeleteHamare Kshetra ki bhasha AVN bacchon dwara Bole jane wali bhasha main Jyada Antar Nahin bacche Mul Taha Khadi Boli e general Bhasha ka prayog Karte Hain jabki ki Ham schoolon mein sahityik Bhasha ka prayog Karte Hain Ham bacchon Ko Kitabi Bhasha main bolkar sirf Aate Hain Taki bacche Sahaj pass Saharsa se samast AVN Unki Matra bhasha mein Kitabi Bhasha ko samast saton bacchon ko Bhasha Gyan Karate Hain
ReplyDeleteपाठ पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है।इसलिए पहले स्कूल की भाषा मे पढ़ाया जाना चाहिए ।
ReplyDeleteफिर बच्चों की भाषा मे उसके बारे मे बात करना चाहिए।और बच्चों को अपनी भाषा मे बोलने का अवसर देना चाहिए।
हमारा क्षेत्र महाराष्ट्र से लगा होने के कारण घरों में मराठी बोली जाती हैं ।इस कारण हमें बच्चों को पहले पाठ को पढकर सुनाते हैं,तथा समझाते समय पाठ में आये शब्दों का अर्थ मराठी मे बताने का अवसर देते है ।इस प्रकार बच्चे पाठ की विषय वस्तु को समझने का प्रयास करतें हैं।
ReplyDeleteHamari school ki bacchon ki Bhasha aur Kat Pustak ki bhasha mein koi Antar Nahin Hai Vahi Unki matrabhasha hai jo path Pustak ki Bhasha hai isliye Ham logon ko koi Katni nahin aati hai
ReplyDeleteहमारी कक्षाओं के बच्चे अलग-अलग भाषा संबंधी परिवेश से आते हैं पर अक्सर उन्हें अपनी भाषा से शिक्षण सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है भारत में कितनी भाषा संबंधी विविधता होने के बावजूद स्कूलों में शिक्षा का माध्यम केवल 36 भाषाएं ही हैं बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती और उनकी शिक्षा बहुत हद तक या पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में ही होती है एक मोटे आकलन से पता चलता है कि हमारे देश के प्राथमिक स्कूलों में लगभग 25% बच्चे घर और स्कूल की भाषा में अंतर होने के कारण आरंभिक वर्षों में गंभीर चुनौतियों का सामना करते हैं बच्चे जो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने के लिए विवश है पर स्कूल के बाहर उन्हें अंग्रेजी भाषा बोलने सुनने को नहीं मिलती इस श्रेणी में हमारे देश को अनेकों बच्चे पाए जाते हैं इस कारण यह बच्चे कक्षा में अपमानित लाचार और डरा हुआ महसूस करते हैं
ReplyDeleteबच्चों को स्कूल में अपनी भाषा का भरपूर इस्तेमाल करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। प्राथमिक विद्यालय में इस बात का विशेस ध्यान देना चाहिए कि छात्र अपनी बात मातृ भाषा में अभिव्यत कर रहा हे तो उसे पूर्ण सरहना और प्रोत्साहन दिया जाए। समझ बढने के साथ उसे पुस्तक की भाषा में पढ़ाया जाए।
ReplyDeleteहमारे देश में अनेक भाषाएं बोली जाती है जिसके कारण बच्चों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। परन्तु एक शिक्षक को उसकी मातृभाषा को प्राथमिकता देनी चाइए।
ReplyDeleteBacchon ko unki matrabhasha mein padhaanaa sahaj hai Lekin party pustak ki Bhasha aur Matra bhasha mein kafi antar hone ke Karan ko padhaanaa thoda mushkil hota hai kyunki har EK bacche ki matrabhasha alag alag hoti hai lekin prayas Kiya Jana chahie kyunki matrubhasha mein hi unhen pada hai ya nahin taki vah kisi bhi vishay vastu ko aasani se samajh sake
ReplyDeleteहमारे विद्यालय के बच्चे जो दैनिक जीवन में जिस भाषा का प्रयोग करते हैं और पाठ पुस्तक में लिखी गई भाषा है उसमें खास अंतर नहीं है कुछ शब्द ही हैं जिनका प्रयोग बोलने में करते हैं परंतु यदि हम पुस्तक की भाषा का प्रयोग कर उनसे गतिविधि करवाते हैं तो समझ जाते हैं।
ReplyDeleteजैसे, गाय-गैईया
बकरी-बकरिया
आपने ,तुमने -तेने
कलम-किलम
उपरोक्त प्रकार के शब्दों का प्रयोग करते हैं परंतु पाठ पुस्तक की भाषा जब हम बोलते हैं तो वह समझ जाते हैं।
बच्चें जो भाषा अपने घर पर बोलते हैं कुछ इसी तरह की भाषा कक्षा में भी पढ़ाई जाती है इसमें कई शब्द ऐसे होते है जो बिल्कुल अलग है जैसे
ReplyDeleteकुछ सब्जियां जिनका नाम स्कूली भाषा में कुछ और तथा घर पर कुछ और है
गड़ेलू ये क्षेत्रीय भाषा में है जबकि हिंदी भाषा में लौकी कहते है तो बच्चो को उस सभी का चित्र दिखाकर गदेलू और लौकी में संबंध बता सकते हैं
बच्चे जो भाषा बोलते हैं वह बघेली है जो मातृभाषा यानी पाठ्य पुस्तक से ज्यादा भिन्न नहीं है कुछ शब्दों का फर्क है जिसे पर्यायवाची शब्द के रूप में पाठ्य पुस्तक से जोड़कर सिखाया जाता है जैसे हैंडपंप से पानी भर लावा यथा हैंडपंप से पानी भर लाओ
ReplyDeleteयादवेंद्र सिंह
सहायक शिक्षक
शासकीय माध्यमिक शाला कोठरा
श्रीमती राघवेंद्र राजे चौहान कन्या आश्रम शाला मलावनी शिवपुरी। भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जाता है भाषा व्यक्ति की अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है यही नहीं वे हमारी सामाजिक सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है भाषा के बिना मनुष्य सर्वदा अपूर्ण है। हमारी स्कूल में बच्चों की भाषा और पाठ्य पुस्तक की भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है हमारी भाषा बुंदेलखंडी है बच्चों की जो भाषा बढ़ाई जाती है वहीं दी है अतः बच्चों की समझ में आसानी से आ जाती है अतः बच्चों को सिखाना आसान हो जाता है
ReplyDeletesuresh sharma epes ms singhrai
ReplyDeleteपाठ पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है।इसलिए पहले स्कूल की भाषा मे पढ़ाया जाना चाहिए ।
https://mp-nishthafln.blogspot.com/2021/12/7-2.html
ReplyDeleteBacche book ki bhasha ko aasaani se nhi samajh pate he isliye hme bacche ko unki sthaneeya bhasha me samjhane ka prayaas karna chahiye.
ReplyDeleteअलग-अलग क्षेत्रों में बच्चों को उनकी भाषा में शिक्षा प्रदान करना बहुत ही गंभीर चुनौती है। सबसे पहले तो बच्चे कोन सी भाषा में बात करते हैं ये समझना बहुत जरूरी है। बच्चों को जो भाषा समझ में आती हैं उस भाषा में शिक्षा प्रदान करना चाहिए।
ReplyDeleteMadhya Pradesh ki Pramukh Bhasha Hindi hone ke Karan pathya Pustak on mein mein likhi Bhasha ko samajhna Na Itna Mushkil Nahin Hai
ReplyDeleteहमारे यहाँ पाठ्यपुस्तक की भाषा और बच्चों के द्वारा बोले जानी भाषा में अंतर है तो हम पाठ्यपुस्तक की भाषा को पढ़ाने के बाद बच्चों की भाषा मे उन्हें समझा दिया जाता है। परंतु अंग्रेजी भाषा पढाने में परेशानी आती है ।
Deleteहमारे क्षेत्र में 80%आदिवासी लोग रहते हैं अत आदिवासी बोली बोली जाती है प्राथमिक में जब पढ़ाते है तो उदाहरण के लिएजैसे म मच्ची का बोलते है तो उन्हें बोलने दिया जाता है फिर जब वो वर्णमाला सीख जाते है तो उन्हें बताया जाता है की जो आप म से मचची नही उसे मछली कहा जाता है गिनती में भी एक के बाद दुई बोलते है तो बाद में अंक की पहचान होने के बाद दुई नही उसे दो कहा जाता है इस प्रकार समझाया जाता है सर आइगो
ReplyDeleteबच्चे प्रारंभ में कहते थे मास्टर आईगो याने सर आ गए है सर तू कब आया तो उन्हें बताया गया कि तू नही आप कह कर बुलाए इस प्रकार 1 ली से 3 रि तक बच्चो को उनकी भाषा का उपयोग कर समझाकर उच्च कक्षा में L2 की और आसानी से अध्ययन करा सकते है
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में पाठ्यपुस्तकों की भाषा और बोली जाने वाली भाषाओं में बहुत अंतर है । इसलिए पहले बच्चों को उनकी अपनी भाषा में संलग्न रखते हुए मानक भाषा ( पाठ्यपुस्तकों की भाषा) से परिचित करवाना चाहिए । जैसे बच्चों की भाषा में "कुत्ता" को " टेगडा" या " कुतरा" बोला जाता है । बच्चों को उनकी अपनी भाषा से मानक भाषा में जोड़ना होगा ।
ReplyDeleteदेश के अधिकांश भाग में बोली जाने वाली भाषा और पाठ्यक्रम की भाषा में कुछ न कुछ अंतर होता ही है, लेकिन हिंदी (खडी़ बोली) के माध्यम से सीखना सिखाना आसान हो जाता है,
ReplyDeleteपाठ्यक्रम की बातों का उच्चारण करने के उपरांत बच्चों को उनकी मातृभाषा में समझाया जाना चाहिए, जिससे उनकी समझ सकारात्मक बनी रहे,
हिंदी भाषी क्षेत्रों में सामान्यत घर और स्कूल की भाषा में बहुत अधिक अंतर नहीं होता, परंतु वे बच्चे जिनके घरों में अंग्रेजी भाषा नहीं बोली जाती और वे अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ने जाते है,वे बच्चे परेशान होते हैं।
ReplyDeleteबाल किशोर सेन शा प्रा शाला घंघरी खुर्द कटनी हमारे यहाँ के छात्रों की मात्रभाषा एवं पाठ्यपुस्तकों की भाषा में कोई विशेष अंतर नहीं है ।फिर भी बच्चे प्रारंभ में अपनी ग्रामीण क्षेत्रीय भाषा का ही उपयोग करते हैं । अतः प्रारंभिक समय में बच्चों की ही मात्रभाषा का उपयोग करते हुए धीरे धीरे पाठ्यपुस्तकों की भाषा का अभ्यास कराया जाता है ।
ReplyDeleteमेरे स्कूल के क्षेत्र में हिंदी भाषा का प्रभाव है आसपास के गांव से आने वाले बच्चे अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में हिंदी भाषा को समझते हैं क्षेत्र की भाषा को ध्यान में रखते हुए उन्हें क्षेत्रीय भाषा में विषय से परिचित कराया जाता है और फिर विषय को आगे बढ़ाया जाता है
ReplyDeleteपाठ पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है।इसलिए पहले स्कूल की भाषा मे पढ़ाया जाना चाहिए ।
ReplyDeleteफिर बच्चों की भाषा मे उसके बारे मे बात करना चाहिए। और बच्चों को अपनी भाषा मे बोलने का अवसर देना चाहिए
हमारे स्कूल में बच्चों की भाषा और पाठ्यपुस्तक की भाषा में अंतर है जब बच्चों को पढ़ाया जाता है तो समझ नहीं आने पर उनकी मातृभाषा में समझाते हैं |शा प्रा वि इसरथुनी
ReplyDeleteबच्चे अपनी भाषा में अच्छी तरह निपुण होते हैं जब वह विद्यालय आते हैं तो उन्हें एक अलग भाषा का स्वरूप मिलता है जिससे वे अपरिचित होते हैं इसलिए उन्हें पहले उनकी भाषा में सिखाना बेहतर होगा।इसके पश्चात ही उन्हें किताबी भाषा का ज्ञान कराना बहतर होगा।
ReplyDeleteShasakiy prathmik Shala gangiri Khurd gramin sala hi yahan matrubhasha ke alava Anya bhashaen bhi boli jaati hai isliye unhen unki Bhasha ko samajhte hue a path pustakon ki bhashaen ka adhyayan karana hi hai Jaise a gay ko gaiya kahate Hain
ReplyDeleteHamare haan shala mein or ghar ki bhasa mein koi anter nai hai jisse bachchon ko koi takleef nai hoti hai or agar koi takleef hoti hai to unhe purna rup se samjhaya jata hai
ReplyDeleteनहीं मैं जिस विद्यालय में पढ़ता हूँ वहाँ के बच्चे अमूमन हिंदी बोलते और समझते हैं। ग्रामीण जन हिंदी खड़ी बोली का उपयोग बोल चाल में करते हैं, लेकिन इसका कोई प्रभाव बच्चों पर दृष्टिगोचर नहीं होता।
ReplyDeleteसकीना बानो
ReplyDeleteहमारे यहां की पाठयपुस्तकों की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में अंतर नहीं है अधिकांश बच्चे हिंदी भाषा बोलते हैं यही उनकी मातृभाषा है इसलिए उन्हें अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है बच्चे स्कूल की भाषा,पाठयपुस्तक की भाषा को अच्छे से सीखते, समझते हैं।
हमारे स्कूल में पढ़ाई जाने वाली भाषा और बच्चों द्वारा बोली जाने वाली भाषा लगभग एक समान है किताबों में लिखी हुई भाषा या हमारे द्वारा समझाने पर बच्चे किताबें एवं हमारी भाषा को समझते हैं यही उनकी मातृभाषा भी है इसलिए हमारे यहां एक समान भाषा है जिसे बच्चे अपने घर परिवार मैं भी बोलते हैं और समझते हैं
ReplyDeleteMeri Shala mein pathya pustak Hindi bhasha mein hai aur meri Shala ke bacche Hindi bolate hi is Karan bhasha mein jyada antar nahin hai bacche Hindi acche se samajhte Hain kuchh bacche gay ko Ho Gaya kahate Hain to unhen ham hum Gaye kahana bolna padhna likhna Sikh sakte hain ek do bacche a daliyon ko Duggal bolate Hain to unhen ham daliya bolna sikhate Hain ashudh Shabd ko shuddh bolna padhna likhna na Sikh aate Hain bacchon se a a aapas mein Khel Khel mein gatividhi ke madhyam se unhen sikhate Hain
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा एवं पाठ्य पुस्तकों की भाषा में बहुत अंतर है देखने को मिलता है कि बच्चों को उनकी भाषा में संलग्न रखते हुए पाठ्य पुस्तकों की भाषा से परिचित करवाना चाहिए ताकि बच्चे सरलता से सीख सकें और उनकी समाज सकारात्मक बनी रहे हमारे यहां की भाषा यह है उदाहरण कुत्ता को कुकुर वह बिल्ली को बिलारी कहते हैं और बैल को बर्दा कहा जाता है खाली को टटिया कहा जाता है
ReplyDeleteकक्षा के बच्चे जो बोली दैनिक जीवन में सहज रूप से बोलते समझते हैं वह पाठ पुस्तकों में लिखी गई भाषा से एक शिक्षक के तौर पर हमारे लिए समझना महत्वपूर्ण है की हमारी कक्षाओं के बच्चे अलग-अलग बोली संबंधी परिवेश से आते हैं पर अक्सर उन्हें अपनी भाषा से शिक्षण सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है भारत में कितनी भाषा संबंधी विविधता होने के बावजूद स्कूलों में शिक्षा का माध्यम केवल 36 भाषाएं ही हैं बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती और उनकी शिक्षा बहुत हद तक या पूरी तरह एक अपरिचित भाषा में ही होती है एक मोटे आकलन से पता चलता है कि हमारे देश के प्राथमिक स्कूलों में लगभग 25% बच्चे घर और स्कूल की भाषा में अंतर होने के कारण आरंभिक वर्षों में गंभीर चुनौतियों का सामना करते हैं । धीरे धीरे बच्चे किताबी भाषा को समझने लगते है।
ReplyDeleteHamare school m bachchho ki bhasa or pathyapuska ki bhasa m antar h . Jab bachchho ko padaya jata h to samajha nahi aane par unki matrabhasa m samjhate h
ReplyDeleteभाषा औपचारिक बिचारो के आदान प्रदान का माध्यम है भाषा के बिना मनुष्य का जीवन अपूर्ण है प्रारम्भिक बर्षो में बच्चों को बताई गई भाषा उनके जीवन मे बहुत ही मायने रखती है कम उम्र में प्राप्त ज्ञान लम्बे समय तक चलता है भाषा पाठ्यपुस्तक व आसपास बोलने बाली समान हो तो पढ़ाने व बच्चों को समझने में आसानी होती है
ReplyDeleteकल्पना मुखरैया -(प्रा. कन्या. शाला. करारा )हमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी /बुंदेलखंडी भाषा में बोलते हैं इसलिए बच्चों को शुरुआत में मातृभाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं।भाषा और मातृभाषा में ज्यादा अंतर न होने के कारण बच्चे आसानी से पाठ्यपुस्तक की भाषा सीख जाते हैं।
ReplyDeleteBacche Jo Bhasha ghar mein bolate Hain adhikansh jagah schoolon mein bhi use se milati julti Bhasha ka prayog hota hai thoda bahut antar hota hai jisse bacchon Ko unka antar samjha kar padhaai ya aur samjha ja sakta hai bacchon ki Ghar ki Bhasha school ki bhasha ke liye ek Setu ka Nirman Karti hai jisse bacchon ko samajhne aur padhne mein sahuliyat Hoti hai bacche apni dincharya mein jis Bhasha ka prayog karte hain agar use samjhaya jaaye to bahut jaldi school ki Bhasha Sikh jaate Hain Mera manana hai ki ki yah Bhasha ka thoda antar bacchon ke andar aur utsukta hi paida Karti karta hai aur bhi ise likhkar bahut gussa hit mahsus karte hain ise hamen samasya nahin Samadhan ke roop mein Lena chahie Maine dekha hai jab bacche Ghar ki bhasha ke sthan par school ki Bhasha ka prayog vibhinn vastuon ke liye karte Hain to unke chehre per appa Khushi dikhti hai
ReplyDelete
ReplyDeleteसबसे पहले जब बच्चा पहली बार विद्यालय आता हे तब अपनी स्थानीय भाषा लेकर आता है वह समझना होती हे ,उसके बाद पुस्तक कि भाषा समझ या समझा पाते हे इसलिए उनको स्थानीय भाषा से विद्यालय से जोड़ ने का प्रयास करते है,तब जाकर पुस्तक कि भाषा पर ध्यान दिया जाता है /
स्थानीय भाषा व् पुस्तक कि भाषा दोनों ही अलग होती है ,
भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है । माता-पिता बच्चे से 5 वर्ष की आयु तक जिस भाषा में बात करते हैं वह भाषा पाठ्य पुस्तक से अलग होती है यदि मातृभाषा और स्थानीय भाषा में बच्चों को पढ़ाया सीखाया जाए तो बच्चे अति शीघ्र सीखते हैं ।
ReplyDeleteबच्चो की भाषा और पाठ्य पुस्तक की भाषा में अंतर रहता हैं। पुस्तक में अधिकांश शब्द ऐसे रहते हैं जिसे बच्चे नही जानते और उन्हें समझ नही आता। मैं बच्चो की भाषा का इस्तेमाल कर पुस्तक की भाषा से जोड़कर तथा दोंनो भाषा को साथ साथ लेकर अध्ययन और अध्यापन कार्य कराता हूं। जिससे बच्चो को सीखने और समझने मे आसानी होती हैं।
ReplyDeleteबच्चे अपने दैनिक जीवन मे जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, स्कूल मे उससे सटकर भाषा होती है। जिसके कारण बच्चों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वास्तव मे स्थानीय भाषा मे ही अध्यापन कार्य होना चाहिए।
ReplyDeleteबच्चों की भाषा और पाठ्य पुस्तकों की भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है इसलिए बच्चे पाठ्य पुस्तकों की भाषा को समझते और बोलते हैं पाठ्यपुस्तक पढ़ाते समय बच्चों को कोई परेशानी नहीं होती है और बच्चे अच्छे से समझ भी पाते हैं।
ReplyDeleteभाषा को वैचारिक आदान प्रदान का माध्यम कहा जाता है।हमारे स्कूल मे पढ़ाई जाने वाली भाषा और बच्चों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा लगभग एक समान है ।बच्चों को हिन्दी भाषा के पाठ पढ़ाते समय बच्चे पुस्तक की भाषा को अच्छे से समझ पाते है।क्योंकि उनके घर परिवार में भी लगभग यही भाषा बोली जाती ।यही उनकी मातृभाषा है।इसलिए अध्ययन अध्यापन मे भाषा संबंधी कठिनाईयां हमारे विद्यालय मे नहीं होती है।फिर भी जब बच्चा कक्षा एक मे प्रवेश लेता है।वह किस स्थान से आया है उसके बारे मे जानकर उसकी मातृभाषा में बात करते है ।उसे भाषा को समझने के पर्याप्त अवसर देते है। फिर पुस्तक से जोड़ने का प्रयास करते है।
ReplyDeleteबच्चों की भाषा और पाठ्य पुस्तक की भाषा में अंतर नही है बच्चों के घरों में भी हिंदी भाषा बोली जाती है इस कारण से बच्चों को समझने परेशानी नहीं होती हैं कुछ शब्द समझा में नहीं आते है उन्हें क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली में समझाते है
ReplyDeleteHamare Yahan jitne bhi bacche school mein Aate Hain UN sab ki Bhasha Gujarati hai vah bacche apne ghar Main Gujarati bhasha ka istemal Karte Hain jab ki school mein Unka pathykram Hindi bhasha mein Hota Hai bolchal ki Bhasha se Unki bhasha Puri Tarah alag hoti hai Kintu Jab vah Ghar Se Bahar nikalte Hain aur sthaniya Logon se baat karte hain Toh
ReplyDeleteHindi ka anuvad Karna Sikh Jaate Hain Dheere Dheere vah pathykram ki bhasha ko bhi samajhne Lagte Hain is tarike se vah apni bhasha aur pathykram ki bhasha mein talmel bana Lete Hain.
Arvind Kumar Tiwari ASSISTANT TEACHER M.S dungariya (Chourai) बच्चों की भाषा परिवेश में बोली जाने वाली भाषा होती है ।उसे वे सहज रूप से बोलते और समझते हैं ।पाठ्यपुस्तकों की भाषा के शब्द कठिन होते हैं ।जिन्हें समझने लिएकिसी संदर्भ की आवश्यकता महसूस होती है।शिक्षक को उसकी भाषा की समझ होना जरूरी है ताकि वह उनके भाव को समझकर उसकी समस्याओं को हल करसके।
ReplyDeleteबच्चों के द्वारा बोली जाने वाली बोली और पाठयपुस्तक की भाषा में अंतर होता है।शाला आने पर धीरे धीरे उनको पाठयपुस्तक की भाषा से परिचित कराया जाता है। दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले सरलशब्दों से परिचित कराया जाता है। उनकी मातृ भाषा से अन्य शब्दों को जोड़कर संवाद करके उन्हें शिक्षण से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।
ReplyDeleteरीना वर्मा
प्राथमिक शाला बूंदड़ा
हरदा (म. प्र.)
हमारे स्कूल की भाषा में और छात्रों की मातृभाषा में कुछ फर्क ही होता है । हमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी भाषा में बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं।
ReplyDeleteमैं नर्मदा प्रसाद साहू प्राथमिक शिक्षक प्राथमिक शाला टिकराटोला (बीजा)विकासखंड मवई जिला मंडला हमारे यहां स्थानीय बोली और पुस्तक की हिन्दी भाषा मैं ज्यादा अंतर नहीं है ।फिर भी थोड़ी अंतर है जिसे समझने में बच्चों को कठिनाई होती है। जैसे हिंदी भाषा में गाय का चार पैर होता है । जिसे स्थानीय भाषा में बोली जाती है । गैईया के चार पांव होथय।गाय को गैईया, पैर को पांव,होता है को होथय कहते हैं । इसी तरह बहुत से शब्दों में अंतर पाया जाता है जैसे तालाब को तलवा ,लौकी को तूमा ,मूली को मूरा, लोटा को चरू बोला जाता है।इन शब्दों को स्थानीय भाषा में समझाते हुए,मानक भाषा सिखाया जाता है। आई से ,गई से ,खाई से ,लाई से ,सोई से आदि शब्दों की अधिकता है।
ReplyDeleteनमस्ते मैं ज्योति सक्सेना पीएस नामा खेड़ी हमारे स्कूल के बच्चों की भाषा और किताबों की भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है परंतु कुछ कुछ शब्द में थोड़ा अंतर है जैसे बुलाना को गांव में टे रना लड़का लड़की को मोड़ा मोड़ी नाश्ता को कलेवा सब्जी को तरकारी आदि
ReplyDelete(शा.प्रा वि.जतौली विकास खण्ड मुंगावली जिला अशोक नगर मध्य प्रदेश)
ReplyDeleteपाठ्यक्रम में शामिल होने के कारण हमे छात्रों को विभिन्न भाषाओं में शिक्षण कार्य कराना होता है यदि छात्रों को प्रारंभिक शिक्षा स्वतंत्र रूप से उनकी मात्र भाषा में दी जाऐ तो छात्र सहज भाव से भाषा सीखते व समझते हैं । जव बच्चे मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण कार्य में रूचि लेने लगते हैं तव हमें बच्चों को अन्य भाषाओं को सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए ।
हमारे यहां पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और बोली जाने वाली भाषा एक ही है । इसलिए बच्चे ज्यादा भ्रमित नहीं होते।। कमलेश पटेल प्राथमिक शिक्षक शासकीय प्राथमिक शाला पटमोहना डाइस कोड 23120208903
ReplyDeleteहमारे यहॉ की भाषा और पुस्तक की भाषा में बहुत अन्तर नहीं है परन्तु ग्रामीण क्षेत्र में कुछ शब्द ऐसे बोले जाते है जो पुस्तक में नहीं होते उन्हें पुस्तक के शब्दों के साथ पढाते हैं तो भाषा आसान हो जाती है
ReplyDeleteमैं शबाना आजमी प्राथमिक शिक्षक शास.एकल.माध्य. वाला बहादुरपुर जिला छतरपुर म.प्र.
ReplyDeleteशिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है। उनका कथन था कि-
यदि मुझे कुछ समय के लिए निरकुंश बना दिया जाए तो मैं विदेशी माध्यम को तुरन्त बन्द कर दूंगा।
गांधी जी के अनुसार विदेशी माध्यम का रोग बिना किसी देरी के तुरन्त रोक देना चाहिए। उनका मत था कि मातृभाषा का स्थान कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती। उनके अनुसार, "गाय का दूध भी मां का दूध नहीं हो सकता।"
पाठ्यपुस्तक की भाषा और मेरे विद्यालय के बच्चों की मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा में कोई विशेष अंतर नहीं है इसलिए कोई विशेष समस्या नहीं है।जिन क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषा और पाठ्यपुस्तकों की भाषा में विशेष अंतर हो तो बच्चों को परेशानियां होती हैं क्यों कि कई बच्चे होते हैं जो होनहार होने के बाद भी भाषा का अंतर होने के कारण उस स्तर तक नहीं पहुंच पाते।क्यों कि भाषा ही समझने और समझाने का मुख्य मुख्य माध्यम है।
ReplyDeleteपुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है।इसलिए पहले स्कूल की भाषा मे पढ़ाया जाना चाहिए ।
ReplyDeleteफिर बच्चों की भाषा मे उसके बारे मे बात करना चाहिए। आैर बच्चों को अपनी भाषा मे बोलने का अवसर देना चाहिए
मेरे यहाँ पर निमाड़भाषा बोली जाती है जो हिन्दी से अलग है |बचों की मातृभाषा अलग होने के कारण बचों को प्रांभिक बर्षों में पढ्न सीखने में बहुत कठिनाई अति है |
ReplyDeleteजबलपुर जिले के कुंडम विकासखंड ग्राम कन्हवारा मैं मेरा स्कूल है हमारे यहां की मुख्य भाषा हिंदी है एवं ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण गांव में ग्रामीण भाषा बोली जाती है जो हिंदी ही है पर पुस्तक की भाषा और गांव में बोली जाने भाषा मैं बहुत अंतर है यहां तक गांव में दो अलग-अलग मोहल्ले हैं दोनों मोहल्ले मैं एक में अनुसूचित जाति एक में अनुसूचित जनजाति के बच्चे रहते हैं एक ही शाला भवन में दोनों प्रकार के बच्चे दो अलग-अलग बोलियों का प्रयोग करते हैं जिनमें बहुत से शब्द भिन्न होते हैं और बहुत से समान होते हैं जब हम बच्चों को शाला में अध्यापन कराते हैं उस समय बच्चों के साथ हम स्थानीय भाषा का ही प्रयोग करते हैं जिससे बच्चे हमें समझ लें और हम बच्चों को समझें और चुकी पुस्तक की भाषा भी हिंदी है इसलिए बच्चे दोनों भाषाओं का आपस में सामंजस्य बिठाकर पुस्तक की भाषा को भी आसानी से समझ लेते हैं पुस्तक में लिखे हुए शब्दों का स्थानीय भाषा में भी हम अर्थ बताते हैं ताकि बच्चे पुस्तक की भाषा और ग्रामीण भाषाओं को दोनों को समझ सके
ReplyDeleteआदित्य शंकर पांडे शासकीय प्राथमिक शाला कन्हवारा विकासखंड कुंडम जिला जबलपुर
पाठ्य-पुस्तक की भाषा और बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर होता है। इसलिए पहले बच्चों को स्कूल की भाषा में पढ़ाना आवश्यक है और फिर उनकी बोल चाल की भाषा में बात कर समझाना चाहिए और बच्चों को अपनी भाषा में बोलने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही है।इसलिए बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। और जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है।
ReplyDeleteशिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है।
विदेशी भाषा का बहिष्कार बहुत जरूरी है क्योंकि मातृभाषा में ही बच्चे वास्तविक स्थिति को समझ पाते हैं मातृभाषा में ज्ञान देना ही सर्वथा उचित रहेगा यदि मेरा बस चलता तो मैं मातृभाषा में ही प्राथमिक शिक्षा को महत्व देता।
हमारे यहाँ की भाषा में और किताब की भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है अंग्रेजी भाषा समझने में बच्चों को कठिनाई होती है इसलिए उन्हें अंग्रेजी पढाते समय बच्चों को अर्थ समझाना पढता है
ReplyDeleteमध्य प्रदेश मालवा में हमारे यहां की पाठ्य-पुस्तकों की भाषा और हमारे द्बारा बोली जाने वाली भाषा में में ज्यादा अंतर नहीं है यहां पर अधिकतर बच्चे खड़ी /मालवी बोली में बोलते हैं इसलिए बच्चों को पहले उनकी भाषा में समझाते हैं और फिर पाठ्य-पुस्तक की भाषा में समझाते हैं। अंग्रेजी भाषा को समझाने के लिए पहले लोकल लैंग्वेज में समझाना पड़ता है फिर उनको अंग्रेजी में बताया जाता है
ReplyDeleteNirmala Shivhare prathmik shikshak ps Belha
सुरेश पेठारी एकीकृत शाला मा वि बुरुट ( रहमानपुरा )
ReplyDeleteअपरिचित भाषा और बच्चों की दुविधा
एक शिक्षक के तौर पर हमारे लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि हमारी कक्षाओं के बच्चे अलग-अलग भाषा
संबंधी परिवेश से आते हैं, पर अक्सर उन्हें अपनी भाषा में शिक्षण की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है।
भारत में इतनी भाषा संबंधी विविधता होने के बावजूद स्कूलों में शिक्षण का माध्यम केवल 36 भाषाएँ ही है।
स्कूलों में 36 भाषाएँ
शिक्षण का माध्यम
121 प्रमुख भाषाएँ
देश में 1369 भाषाएँ
चित्र 2: भारत में 36 भाषाओं में शिक्षण की सुविधा उपलब्ध (UDISE 2019-2020)
बहुत सारे बच्चों की भाषाओं को कक्षा में जगह नहीं मिलती और उनकी शिक्षा बहुत हद तक या पूरी तरह
एक अपरिचित भाषा में ही होती है। उदाहरण के लिए राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, मगधी, हरियाणवी
आदि भाषाएँ हमारे देश में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाती हैं, फिर भी इन भाषाओं को स्कूलों शिक्षण के
माध्यम के रूप में जगह नहीं मिल पायी है।
एक मोटे आकलन से पता चलता है कि हमारे देश के प्राथमिक स्कूलों में लगभग 25% बच्चे घर और स्कूल
की भाषा में अंतर होने के कारण आरंभिक वर्षों में गंभीर चुनौतियों का सामना करते हैं।
अपरिचित भाषा के कारण क्षति उठाने वाले बच्चों को हम मुख्यतः 5 श्रेणियों के आधार पर समझ सकते हैं।
1. अनुसूचित जनजाति वर्ग के बच्चे, विशेष रूप से वे बच्चे जो सुदूर आदिवासी या जनजाति बाहुल
इलाकों में रहते हैं और घरों में अपनी मातृभाषा का प्रयोग ही करते हैं।
2. ऐसे बच्चे जो किसी ऐसे राज्य में रहते हैं, जिसकी प्रमुख भाषा उनकी अपनी भाषा से अलग है और
ऐसे बच्चे जो अंतरराज्यीय सीमा क्षेत्रों पर रहने के कारण किसी अन्य भाषा में पढ़ रहे हैं।
3. वे बच्चे जो कोई ऐसा स्थानीय भाषा बोलते है जिसे वहाँ की स्कूली (मानक) भाषा की एक 'बोली'
माना जाता है जैसे, छत्तीसगढ़ी, बागडी, बुंदेली, मारवाड़ी, भोजपुरी आदि को हिंदी भाषा की ही
बोली माना गया है।
4. ऐसे बच्चे जिनकी भाषा लिखित, साहित्य आदि के रूप में पर्याप्त रूप से विकसित है, फिर भी शिक्षा के
माध्यम के रूप में उनका प्रयोग नहीं किया जाता। यह एक बहुत बड़ी श्रेणी है जिसमें कश्मीरी, कोकणी,
डोगरी आदि बहुत सी भाषाएँ शामिल हैं।
5. ऐसे बच्चे जो अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने के लिए विवश हैं, पर स्कूल के बाहर उन्हें अंग्रेजी भाषा
बोलने-सुनने को नहीं मिलती। इस श्रेणी में हमारे देश के अनेकों बच्चे पाए जाते हैं।
फलस्वरूप, ये बच्चे अपने आरंभिक वर्षों में एक ऐसी भाषा में सीखने के लिए मजबूर हो जाते हैं जो वे न तो
बालते हैं और न ही समझते हैं। इस कारण से बच्चे कक्षा में अपमानित, लाचार और डरा हुआ महसूस करते हैं
और शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सार्थक रूप से नहीं जुड़ पाते। इससे उनकी पहचान और आत्मविश्वास को भी
भारी चाट पहुँचती है, जिसके कारण उनका शैक्षिक प्रदर्शन नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है।
अतः बतौर शिक्षक हमारे लिए यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारे बच्चों की भाषा और स्कूल की भाषा
में कितना अंतर है, ताकि उसके अनुसार शिक्षण प्रक्रिया को तराशा जा सके। आइये. इसके लिए एक छोटी
सी गतिविधि करते हैं।
भाषा को वैचारिक आदान प्रदान का माध्यम कहा जाता है।हमारे स्कूल मे पढ़ाई जाने वाली भाषा और बच्चों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा लगभग एक समान है ।बच्चों को हिन्दी भाषा के पाठ पढ़ाते समय बच्चे पुस्तक की भाषा को अच्छे से समझ पाते है।क्योंकि उनके घर परिवार में भी लगभग यही भाषा बोली जाती ।
ReplyDeleteहिंदी भाषा शिक्षण में हमे ज्यादा परेशानी का सामना नही करना पड़ता क्योंकि हमारा क्षेत्र मालवा है और यहाँ बच्चों द्वारा मालवीय भाषा का प्रयोग किया जाता है जो लगभग हिंदी की खडी बोली से मिलती जुलती है।बस कुछ सब्दो को समझाना पड़ता है पर अंग्रेजी भाषा का प्रयोग न ही उनकर घर में किया जाता है और न ही उनके आसपास के इलाके में इस कारण अंग्रेजी भाषा सिखाते समय पहले हर शब्द को उनकी भाषा में बताकर उन्हें सिखाया जाता है ।इसमें थोड़ा समय लगता है लेकिन कुछ गतिविधियों के द्वारा उन्हें समझाना सरल हो जाता है।
ReplyDeleteHamare Yahan Ke bacchon ki matrubhasha aur pathya Pustak ki bhasha Main Koi Vishesh antar Nahin hi parantu Kuchh shabdon ka ka upyog matrabhasha Mein karte hain FIR unhen padh Aate Hain matrubhasha aur pathya Pustak ki bhasha Saman Roop mein hi hai Hamare Yahan Ke bacchon ko koi preshani Nahin hi
ReplyDeleteहमारी मातृभाषा और अध्यापन कराने वाली भाषा मैं ज्यादा अंतर नहीं होता मातृभाषा में खड़ी बोली होती हैं जबकि अध्यापन वाली भाषा मानक भाषा होती हैं जो सारे देश में मान्य होती हैं इसलिए अध्यापन कार्य करने में परेशानी नहीं होती जबकि अग्रेजी भाषा में परेशानियों का सामना करना पड़ता है
ReplyDeleteशिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है। उनका कथन था कि-
ReplyDeleteयदि मुझे कुछ समय के लिए निरकुंश बना दिया जाए तो मैं विदेशी माध्यम को तुरन्त बन्द कर दूंगा।
गांधी जी के अनुसार विदेशी माध्यम का रोग बिना किसी देरी के तुरन्त रोक देना चाहिए। उनका मत था कि मातृभाषा का स्थान कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती। उनके अनुसार, "गाय का दूध भी मां का दूध नहीं हो सकता
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Deleteहमारे यहां बोले जानी वाली भाषा बघेलखंडी है हम लोग पहले बच्चों को बघेलखंडी में समझाते हैं जैसे हम रीमा जाइए थे। बच्चों को बताते हैं फिर किताब की भाषा पर आते हैं जैसे हम लोग रीवा जाते हैं। इस प्रकार बच्चों को पहले स्थानीय भाषा में बताया जाता है फिर किताब की भाषा पर लाते हैं और बच्चे आसानी से समझ जाते हैं।
ReplyDeleteराम नरेश पटेल प्राथमिक शाला -डोड टोला खैरा विकासखंड मऊगंज जिला रीवा मध्य प्रदेश
मोबाइल नंबर-8718097722
स्कूल की भाषा पूरे देश की भाषा होती हैं।जबकि बच्चे अपनी घरू भाषा में बात करते हैं।सबसे पहले हम उनकी भाषा में बात करना चाहिए।फिर उनको मानक भाषा में पढ़ने का अभ्यास करना चाहिए
ReplyDeleteहम बघेलखंड से आते हैं। मैं पहले बच्चों को बघेलखंडी में पढ़ाता हूं इसके बाद किताब की भाषा पर आता हूं बघेलखंडी में पढ़ाने के बाद बच्चे किताब की भाषा को आसानी से समझ पाते हैं और इस प्रकार पढ़ाने से बच्चों को कोई परेशानी नहीं होती है और बच्चे आसानी से समझ जाते हैं।
Deleteराम नरेश पटेल प्राथमिक शाला -डोड टोला खैरा विकासखंड मऊगंज जिला रीवा मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर-8718097722
जिस क्षेत्र में मैं रहता हूं उस क्षेत्र के बच्चे बघेलखंडी भाषा बोलते हैं समझते हैं जानते हैं घरेलू भाषा में बच्चों को ज्यादा सिखाना चाहिए इसके बाद किताब की भाषा पर गाना चाहिए इससे बच्चों में दक्षता बढ़ती है और गुणवत्ता जाती है इस प्रकार बच्चों को सिखाने से वे दक्ष होते हैं जैसे यह आम का पेड़ है बच्चे बघेलखंडी में बोलते हैं यह आम का पेड़ हो इबेरे इसके बाद बच्चों को किताब की भाषा अथवा राज्य की भाषा राष्ट्र की भाषा में सिखाया जाता है।
Deleteबच्चों को स्थानीय भाषा में समझाने के बाद वह किताब की भाषा पर को आसानी से समझ जाते हैं इस प्रकार की पठन-पाठन क्रिया बच्चों को अच्छा समझ में आता है और पहले बच्चों को स्थानीय भाषा में बच्चों की भाषा में समझाया जाए फिर किताब की भाषा पर आ जा आ करके उनको पढ़ आज करके उनको दक्ष किया जाए ऐसा करने से बचे आसानी से समझ जाते हैं।
ReplyDeleteबच्चों को किताब की भाषा के पहले उनके मातृभाषा में पढ़ाने से बच्चे आसानी से समझने के बाद किताब की भाषा के बाद मात्र भाषा में और मातृभाषा के बाद किताब की भाषा में पढ़ाने से बच्चे आसानी से समझ जाते हैं इस प्रकार जैसे हम बघेलखंड में रहते हैं हमारी भाषा बघेलखंडी है बच्चों की भाषा बघेलखंडी है तो हम लोग बघेलखंडी में समझाने के बाद फिर किताब की भाषा में जिसे हम लोग खड़ी भाषा बोलते हैं उस भाषा में समझाया जाता है इससे बच्चे आसानी से समझ पाते हैं।
Deleteजो लोग जहां पर रहते हैं अपने क्षेत्रीय भाषा मैं बच्चों को समझाएं फिर किताब की भाषा पर बच्चों को लाएं जैसे बच्चे मातृभाषा में ज्यादा सीखते हैं इसके बाद किताब की भाषा पर सिखाने से आसानी से समझ सकते हैं
Deleteभाषा के बिना, जीवन अधूरा है, हमारे यहाँ बोली जाने वाली भाषा एवं पाठ्यपुस्तक की भाषा में ज्यादा ज्यादा अंतर नहीं है
ReplyDeleteपाठ्य पुस्तक की भाषा और दैनिक बोली जाने भाषा में ज्यादा अंतर नहीं है। फिर बच्चों की भाषा मे उसके बारे मे बात करना चाहिए।
ReplyDeleteSahi baat hai
ReplyDeleteसविता घोष शासकीय कन्या माध्यमिक शाला शाहगंज हमारे यहां पाठ्यपुस्तक की भाषा और हमारे विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं की भाषाओं में ज्यादा अंतर नहीं है कुछ शब्दों को समझने में बच्चों को परेशानी होती है जिन्हें हम पहले उनके बोलने वाली भाषा मुझे शब्द होते हैं उनके अर्थ में बता देते हैं जिससे वह समझ जाते हैं और उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं आती है
ReplyDeleteसविता Gour शासकीय कन्या माध्यमिक शाला शाहगंज हमारे यहां पाठ्यपुस्तक की भाषा और हमारे विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं की भाषाओं में ज्यादा अंतर नहीं है कुछ शब्दों को समझने में बच्चों को परेशानी होती है जिन्हें हम पहले उनके बोलने वाली बोली में जो शब्द होते हैं उनके अर्थ में बता देते हैं जिससे वह समझ जाते हैं और उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं आती है
ReplyDeleteहमारे यहां बच्चे घर पर बुंदेलखण्डी भाषा बोलते हैं जो हिन्दी से मिलती-जुलती है अत:उन्हें अंग्रेजी सीखने में ही ज्यादा दिक्कत होती है|
ReplyDeleteबी,एल अहिरवाल शासकीय एकीकृत माध्यमिक विद्यालय पिपरौधा छक्का हमारे स्कूल में आने वाले बच्चों की मात्र भाषा बुंदेलखंडी हैं और स्कूल की भाषा हिन्दी है जो कि बहुत ही मिलती जुलती है जिससे बच्चों को स्वीकार करने में परेशानी नहीं होती है और बच्चे आसानी से समझ लेते हैं
ReplyDeleteहमारे स्कूल की भाषा में और छात्रों की मातृभाषा में कुछ ज्यादा फर्क नहीं होता है परंतु कुछ शब्दों को समझने में समय लगता है परंतु जल्दी ही वह सोचने और समझने लग जाते हैं इसका कारण यह हो सकता है कि भोपाल के नजदीक ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण उनके परिवार में भोपाल में बोली जाने वाली भाषा एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा में ज्यादा अंतर वर्तमान समय में नहीं रह गया है गया है क्योंकि स्थानीय बोली के बजाय हिंदी पाठ्य पुस्तक भाषा में बोलने का अभ्यास ज्यादा करने लगे हैं परंतु अंग्रेजी भाषा सीखने में छात्रों को समय लगता है पर वह जल्दी ही सीखने का प्रयास करते हैं बच्चों को किताब की भाषा के पहले उनके मातृभाषा में पढ़ाने से बच्चे आसानी से समझने के बाद किताब की भाषा के बाद मात्र भाषा में और मातृभाषा के बाद किताब की भाषा में पढ़ाने से बच्चे आसानी से समझ जाते हैं इस प्रकार जैसे हम बघेलखंड में रहते हैं हमारी भाषा बघेलखंडी है बच्चों की भाषा बघेलखंडी है तो हम लोग बघेलखंडी में समझाने के बाद फिर किताब की भाषा में जिसे हम लोग खड़ी भाषा बोलते हैं उस भाषा में समझाया जाता है इससे बच्चे आसानी से समझ पाते हैं।शिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है। Vinod kumar bharti PS karaiya lakhroni patharia Damoh Madhya Pradesh
ReplyDeleteहमारे बच्चे जो भाषा का उपयोग करते हैं वह उनके परिवेश से में बोली जाने वाली भाषा है।ओर पाठ्यपुस्तक में जो भाषा का है वह शुद्ध हिंदी है।लेकिन कह सकते है कि बच्चे जो भाषा का उपयोग करते है वह पाठ्यपुस्तक की भाषा से काफी मिलती जुलती है।
ReplyDeleteबच्चे की भाषा और स्कूल में पढ़ाई हुई भाषा अलग अलग होती है बच्चा अपनी भाषा में बहुत अच्छी प्रकार समझ सकता है उसको अपनी भाषा में ही समझाना चाहिए उसकी मातृभाषा में शिक्षा देने से बच्चा बहुत जल्दी सीख जाता है सीख जाता है इसलिए उनको उनकी मातृभाषा में शिक्षा देना हमारा परम कर्तव्य
ReplyDeleteपाठ पुस्तक में लिखी भाषा और हमारे यहां अध्ययनरत बच्चों की भाषा में बहुत अंतर नहीं है फिर भी उन्हें पढ़ाते समय पाठ को पहले बच्चों की मातृभाषा में समझाया जाता है जैसे ही वे पाठ को अच्छी तरह से समझ जाते हैं तो फिर उनकी मातृभाषा को किताब की भाषा से जोड़कर समझाया जाता है और वे धीरे-धीरे किताब में लिखी गई भाषा को समझने लगते हैं ।
ReplyDeleteस्कूल की भाषा और बच्चे की घर की भाषा में अंतर होता है लेकिन हमारे लिए एक ब्रिज के रूप में कार्य करना चाहिए जिससे बच्चे आसानी से समझ सके
ReplyDeleteहमारें कै बच्चों की भाषा व किताब की भाषा में बहुत अंतर है, यहाँ आदिवासी बोली जाती हैं, हिंदी भाषा उनको कम ही सुनने को मिलती हैं, कुछ सालों पहले कोई माध्यम नहीं था, अब तो फिर भी मोबाईल हैं, हिंदी में बेगम व आदिवासी में रिंगड़ा , हिंदी में लौकी और स्थानीय भाषा में दुधी ऐसे ही बहुत से शब्द जैसे आम लिखा पर उसे वो केरी बोलते है, गाय को डगरी अत: जब बच्चा पहली बार शाला आता हैं, तो काफी असहज महसूस करता हैं, उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने के लिए उनकी भाषा में बात करना आवश्यक हैं, Gunmala dangi ps dhekal choti Jhabua mp
ReplyDeleteयह बात बिल्कुल सही है कि हमारे यहां बच्चों की मातृभाषा और स्कूल में दी जा रही शिक्षा की भाषा में बहुत अंतर होता है.
ReplyDeleteहमारा जिला एक आदिवासी बाहुल्य जिला है जिसकी प्रमुख भाषा गोंडी भाषा है .
ऐसे ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में गोंडी भाषा के साथ हिंदी भाषा या अंग्रेजी भाषा में शिक्षण कार्य करना बहुत मुश्किल कार्य होता है.
Pathye pustak ki bhasha aur aam bole Jane Bali bhasha me jyada fark nahi hota lekin bahut se shabd phadne samjhne me kadhinai hoti hai jissse bachha pichad jata hai Esse bachcho ko shikshak ko sahi dhang se samjhane ki aavsakta hai jisse bachha sahaj anubhav mahsos kar sake
ReplyDeleteHamaare yaha bachche unki bhasha me baat karte h avm kitabo ki bhasha thodi kathin hoti h phir bhi bachchhe tod marod kar kitabo ki bhasha bolte h avm samajhne ki koshish karte h. P.s.nai aabadi bhojakhedi block alote dist.ratlam
ReplyDeleteMery paathshala gps Dongarpur Gwalior me pathya pustak aur bacho ki bhasha me jyada antar nahi hai isliye bacho ko padne me koi samasya nahi aati hai
ReplyDeleteमै रामराज बैस,नमस्कार मै बघेलखंड से हूँ। मेरे बच्चे बघेली बोलते है। बच्चों से बघेली मे बातें करके किताब की भाषा से जोड़ेगे।
ReplyDeleteबच्चों को पाठय पुस्तक की भाषा को पढ़ाने से पहले उनको अपनी ग्रामीण देहाती भाषा में बात करके ब्च्चों को मानक भाषा से जोड़ा जाता है। जिससे बच्चों को पुस्तक भाषा आसानी से समझ जाते है। इन दोनों के बीच
ReplyDeleteमें शिक्षक ब्रिज के रूप में कार्य करता है।
जिला भोपाल के बैरसिया तहसील के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की स्थानीय भाषा और पाठ्य पुस्तक की खड़ी भाषा के कई शब्दों में समानता और असमानता दोनों ही होती है, असमानता की स्थिति में कक्षा 1,कक्षा 2 के बच्चों को भाषा सीखने- सिखाने की प्रक्रिया में असहजता और असमंजस जैसी चुनौतियों का सामना बच्चों को और शिक्षकों दोनों को करना पड़ता है।
ReplyDeleteजैसे शिक्षक द्वारा तो और ता को मिलकर तोता पढ़ाने या कौ और आ मिलाकर कौआ पढ़ाने में यदि इन पक्षियों के चित्रों का उपयोग किया जा रहा हो तो बच्चे तो और ता मिल कर तोता न पढ़ कर बाण्या बताते हैं,इसी प्रकार कौआ को ढेड्या बताते हैं।ऐसे अनेक उदाहरण है जो चुनौती के रूप में शिक्षक के सामने होते हैं।
पहले बच्चो को उनकी मातृभाषा में समझाना चाहिए फिर पाठ पड़ाना चाहिए इससे वे जल्दी समझ पाते है।
ReplyDeleteबच्चों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा और पाठ्य-पुस्तकों की भाषाओं में ज्यादा अंतर नहीं होता है जिसमें बच्चे परिवार के साथ बोली व समझी जाने वाली भाषा को सहज रूप से सुनकर बोलते और समझते हैं।जो कि पाठ्य-पुस्तकों की भाषाओं को बोली जाने वाली भाषा के साथ बोला व समझा जा सकता है।
ReplyDeleteबच्चों की परीवेश की भाषा और पाठ्यपुस्तक की भाषा में अंतर होता है। जब बच्चों को स्कूल में पढ़ाया जाता है ।तो समझ नहीं आने पर उनकी मातृभाषा में समझाना पड़ता हैं |
ReplyDeleteHamare school mai bachhon dwara boli jane bali bhasha or pathypustak ki bhasha mai koi khash antar nahin he.phir bhi shikshak bachchan ko unake parivesh se jodkar oaur unake dada-dadi dwara jo khahaniyan sunai jati he. Ham shikshak bhi bhachchon usi bhasa main padate he.
ReplyDeleteThere is not much difference in the way children speak and in what language they read in textbooks.They speak a dialect of Hindi and they read in Hindi and this helped in better understanding of content.They have acquired the dialect so when they were learning it wasnt that much difficult or tough for them
ReplyDeleteपाठयपुस्तक में लिखी गई भाषा और घर में बोली जाने वाली भाषा थोड़ी अलग रहती है ,पाठयपुस्तकों में लिखी गई भाषा का हर शब्द व्याकरण सम्मत होता है बच्चा कभी कभी कम समझ पाता है यह एक शिक्षक को चाहिए कि वह पाठ के कठिन शब्दों को उनकी मातृभाषा में समझाए ताकि बच्चे पाठ को आत्मसात कर के पढ़े।
ReplyDeletePustak me likhee bhasha aur boli jane bali bhasha me antar hota hai phale bachhe ke parivesh me boli jane vali bhasha ya matra bhasha ka pryog karna chahiye .phir unhe pushtak me likhi bhasha bolna aur ushka anusharan karna chahiye.
ReplyDeleteबच्चे जो घर पर बोलते हैं बात करते है वह भाषा उन्हे समझने में आसानी होतीहै। पाठ्यपुस्तकों की भाषा और उसका आंकलन करने मै काफी समय लगता है ।पाठ्यपुस्तक उनकी मात्रभाषा में होना आवश्यक है ।
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही है।इसलिए बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। और जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है।
ReplyDeleteशिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे। उनका मानना था कि विदेशी माध्यम बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है तथा उनमें मौलिकता का अभाव पैदा करता है। यह देश के बच्चों को अपने ही घर में विदेशी बना देता है।
Bacchon ko Hamare school mein Hindi mukhya Bhasha hai english bhasha ke a rup mein padhte hain Hindi Hamare Kshetra Ki matrabhasha Hai
ReplyDeleteYdyapi Bhasha vicharon k adan pradan ka mukhya madhyam h jo bachhe apne as pas jis bhasha ka upyog karte hai pahle ham usi ko madhyam banate h isk bad dheere dheere bachhe kitabo ki bhasha v samjhne lgte h
ReplyDeleteसंजय राठौड़(प्राथमिक शाला फोपनार खुर्द जिला बुरहानपुर)हमारे यहां बच्चों को हिंदी भाषा ओर मातृभाषा बिल्कुल मिलती जुलती सी लगती है बच्चो से जब हम उनकी मातृभाषा में बात करते है तो एक स्नेह भाव बच्चो को हमसे ओर हमे उनसे होने लगता है मातृभाषा में समय समय पर बात करना या कोई नाटक ,कहानी सुनना सुनाना बच्चों को बहुत अच्छा लगता है बच्चे ध्यान एकाग्र रखकर सुनते है और अपनी रुचि दिखाते है फिर कुछ दिनों बाद पाठ्यपुस्तकों की भाषा मे भी बहुत रुचि दिखाने लगते है हिंदी भाषा यह एक ऐसी भाषा है जो हर किसी को बोलने में समझने में आसानी होती है इसलिए बच्चो को हिंदी की पाठ्यपुस्तकें पढ़ने में मजा आता है ।
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही है।इसलिए बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। और जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है।
ReplyDeleteपाठयपुस्तक में लिखी गई भाषा और घर में बोली जाने वाली भाषा थोड़ी अलग रहती है ,पाठयपुस्तकों में लिखी गई भाषा का हर शब्द व्याकरण सम्मत होता है बच्चा कभी कभी कम समझ पाता है यह एक शिक्षक को चाहिए कि वह पाठ के कठिन शब्दों को उनकी मातृभाषा में समझाए ताकि बच्चे पाठ को आत्मसात कर के पढ़े।
Hamare Yahan bacchon dwara boli jane wali Bhasha aur Pustak ki bhasha mein Antar Vishesh Nahin Hai is Karan pareshani nahin aati hai parantu language to English padhte Samay Jarur Kuchh pareshani ka Samna karna padta hai Jis Ke Liye Ham bacchon Ko action word vagaira ke Madhyam se poem ke Madhyam se uthana baithana padhna likhna sikhate h
ReplyDeleteGovt Girls Middle SCHOOL Baghana Neemuch
Meenakshi Meshram GMS Pipra Kala Maihar.
ReplyDeleteहमारे यहाँ बच्चों द्वारा बोली जाने वाली भाषा और पाठ्यपुस्तकों की भाषा में बहुत कम अंतर हैI यद्यपि बच्चों को अंग्रेजी विषय पढ़ने में समस्या आती है तो उसके लिये बच्चों को पाठ का उच्चारण कर अर्थ समझा कर पाठ समझाया जाता है।
स्कूल की भाषा राजभाषा राष्ट्र की भाषा हो सकती है जबकि प्राथमिक शाला के बच्चे घर की भाषा में बोलचाल की भाषा में मातृभाषा में जो जहां का छात्र है उस क्षेत्र की भाषा में ज्यादा सीखते हैं पहले उनको उसी भाषा में सिखाना चाहिए फिर पुस्तक की भाषा को सिखाना चाहिए पुस्तक की भाषा किताब की भाषा घरेलू भाषा सीखने के बाद बच्चे अच्छी तरह से सीख पाते हैं जो यह काम शिक्षकों को कराना चाहिए इससे बच्चे ज्यादा निपुण और दक्ष होते हैं।
DeleteHamare Gaon Kshetra ki Bhasha aur Kitab ki bhasha main Jyada Antar Nahin Hai Gaon Chetra Ki matrubhasha bagheli Hai hai aur Kitabi Bhasha Khadi Hindi sabse pahle Unki matrabhasha main main unko Samjha jata hai FIR Dhire Dhire bacchon ke Sampark Mein Rahenge Badi bacchon ke Madhyam se Bhasha Ho Sikh Jaate Hain To Dhire Dhire Inko Kitabi Bhasha samajh mein aane Lagti Hai Isme Koi dikkat Nahin
ReplyDeleteकक्षा ke बच्चे जो भाषा दैनिक जीवन में sahajr रुप से बोलते समझते हैं वह पुस्तक में लिखी गई भाषा se आंशिक रूप से अलग है I बच्चों की भाषा में उच्चारण संबंधी भिन्नता है I जब बच्चे पढ़ना और लिखना शुरू करते हैं तब अपने परिवेश में बोली जाने वाली भाषा का इस्तेमाल कर गलत लिखते हैं I जैसे चावल को chamal लिखते हैं I इसी तरह परिवेश me पिछले ko अगले और अगले को पिछले बोलते हैं जिससे वाक्य का अर्थ ही बदल जाता है I
ReplyDeleteबच्चों को उनकी मातृभाषा में ही सिखाना चाहिए जो बच्चों को पहले से आती है और बच्चे जिस परिवेश से आते हैं उसकी जानकारी शिक्षक को होनी चाहिए एवं उनका शिक्षण कार्य उसी भाषा में होना चाहिए जिससे कि बच्चे आसानी से सीख सकें
ReplyDeleteमैं मालवा क्षेत्र में रहता हूंँ, जहाँ स्थानीय लोगों द्वारा मालवी बोली बोली जाती है। यह हिन्दी से मिलती-जुलती है, अत: मेरी कक्षा के बच्चे साहित्यिक हिन्दी के क्लिष्ट शब्दों को छोड़ कर बाकी शब्द आसानी से समझ लेते हैं; परन्तु अंग्रेजी भाषा पढ़ने व समझने में उनको बहुत कठिनाई होती है, हालांकि वे कुछ आम अंग्रेजी शब्दों का जिन्हें वे बोलचाल के दौरान सुनते हैं,का बखूबी उच्चारण करते हैं। अत: बच्चे जिस भाषाई वातावरण में रहते हैं, उस भाषा को वे बहुत जल्दी सीख व समझ लेते हैं।
ReplyDeletePathay pustak ki bhasha or bachcho ki matra-bhasha me thoda anter he. Bachhe dhire -dhire kuch sabde shikha ker manak bhasha ka prayog krte he or path ko samjhte he.Ghar ki bhasha or pathay pustak ki bhasha alag hone se smjhane me kathinai hoti he pr kosis krte rhte he.English bhasha sikhne me jyada kathinai hoti he.
ReplyDeleteHamare Hamare school mein main bacchon ki ki Bhasha aur party Pustak ki bhasha han main Mein Antar hai Jab bacchon ko padhaya Jata Hai To Tu samajh Nahin Aane per IEA Unki ki Matra bhasha mein samjhe Aate
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरो में बोली जाने वाली भाषा और पाठशाला में शिक्षण की भाषा एक ही है। इसलिए बच्चे स्कूल की भाषा पाठ्यक्रम की भाषा को अच्छे से समझ लेते हैं। बच्चों के घरों में भी स्कूल की भाषा का अधिक प्रयोग होता है इसलिए बच्चे अच्छे तरीके से भाषा को समझ लेते हैं।
ReplyDeletePremchand Gupta P. S. Guradiya matamata शाला मे आने वाले बच्चे आरम्भ में मातृ भाषा ही सीखकर आते है उनको किताब की भाषा सीखने में शिक्षक का सहयोग मिलता है शिक्षक उनकी मातृभाषा को कि भाषा से समझाते हैं घिरे धिरे बच्चे आत्मसात कर लेते हैं
ReplyDeleteहमारे मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में जिस प्रकार की भाषा शैली मातृभाषा के रूप में प्रयोग की जाती है उसमें काफी कुछ भाषा का अंतर होता है जिसमें बच्चों को पढ़कर के अपने विचारों को बोलने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है उस स्थिति में बच्चों को किताब में पढ़ कर उस शब्द का अर्थ और उसके बाद उसे बुंदेलखंडी में बोलने के लिए कुछ शब्द का अर्थ आना जरूरी हो जाता है
ReplyDeleteहमारे क्षेत्र में घरों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूल में शिक्षण की भाषा एक ही है।इसलिए बच्चों को अध्यापन में कोई कठिनाई नहीं होती है। और जो बच्चें अपनी भाषा के स्कूल में न पढ़कर दूसरी भाषा के माध्यम (अंग्रेजी) वाले स्कूल में पढ़ते हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने में परेशानी होती है। इसलिए बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा उनकी मातृभाषा में होना आवश्यक है। आशा जोशी
ReplyDeleteहमारे यहां बच्चों के घरों और उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा ज्यादातर खड़ी बोली और बघेली दोनों मिक्स होती है। जिससे किताबों की भाषा को पढ़ने और समझने में ज्यादा समस्या नहीं होता है। लेकिन ज्यादातर हम बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही किसी भी बात को समझाते हैं। जैसे कि हम किसी भी पाठ के बारे में बच्चों को पढ़ाते हैं किताब को पढ़ाने से पहले बच्चों को हम अपने यहां बोली जाने वाली भाषा में पाठ के बारे में समझाते हैं फिर बाद में पाठ वाली भाषा को एक तरफ से पढ़ाया जाता है जिससे बच्चे पाठ पाठ की भाषा को आसानी से समझ लेते हैं।
ReplyDeleteहमारी कक्षाओं में जो भाषा प्रयोग की जाती है तथा बच्चों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा अलग-अलग होती है क्योंकि बच्चों के घर में साधारण भाषा का प्रयोग किया जाता है व विद्यालय में व पाठ्य-पुस्तकों में खड़ी भाषा का प्रयोग किया जाता है। फिर भी बच्चे समझ जाते हैं। अगर नहीं समझ पाते हैं तो हम उन्हें पहले उनकी भाषा में अनुवाद करके समझाते हैं फिर खड़ी भाषा में अनुवाद करके समझाते हैं।
ReplyDeleteशिक्षा के माध्यम के सन्दर्भ में गांधी जी के विचार स्पष्ट थे। वे अंग्रेजी भाषा को लादने को विद्यार्थी समाज के प्रति "कपटपूर्ण कृति" समझते थे। उनका मानना था कि भारत में 90 प्रतिशत व्यक्ति चौदह वर्ष की आयु तक ही पढ़ते हैं, अत: मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने 1909 ई. में "स्वराज्य" में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनके अनुसार हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाना है। गांधी जी विदेशी माध्यम के कटु विरोधी थे।
ReplyDeleteहम लोग बघेलखंड से आते हैं पहले छात्रों को बघेलखंडी भाषा में समझाया जाता है फिर इसके बाद किताब की भाषा पर लाया जाता है इससे बच्चों में समाज पैदा होती है और समाज के साथ बच्चे अच्छे से सीख जाते हैं और बच्चे मातृभाषा में घर की भाषा में बोलचाल की भाषा में परिचित भाषा में पढ़ाने के बाद किताब की भाषा को आसानी से समझ जाते हैं इसलिए हम सब को चाहिए कि बच्चों को उसकी भाषा में सिखाना चाहिए फिर किताब की भाषा को समझाना चाहिए।
ReplyDeleteशासकीय प्राथमिक शाला गोपालपुर हमारे यहां मात्री भाषा और पुस्तक की भाषा लगभग लगभग एक सी है बच्चे आसानी से पुस्तक पढ़ सकते हैं तो भाषा को भी समझ सकते हैं अतः हमारे यहां पुस्तक की भाषा समझने अधिक कठिनाई नहीं होती।
ReplyDeleteप्रिय भाषा अथवा बोलचाल की भाषा में छात्रों को पढ़ाने से अच्छा लगता है बच्चे ठीक ढंग से समझते हैं घरेलू भाषा अथवा मातृभाषा सीखना बच्चों के लिए आसान होता है जबकि किताब की भाषा डायरेक्ट बच्चों को पढ़ाने से उन्हें दक्षता नहीं आती है उत्कृष्ट नहीं बना पाते हैं इसलिए किताब की भाषा को बाद में बताना चाहिए पहले क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जाना चाहिए।
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